मैंने सोचा साईं से मिलने के कुछ जटिल मार्ग होंगे
शिर्डी की भीड़ में गई - सिर्फ भीड़
लाइन में लगकर विभूति में ढूंढा
छाले पड़ गए
हिम्मत लड़खड़ाई
आराम करने को टेक लगाया
किसी ने सर पे हाथ रखा
आँख खोले तो साईं को पाया
"मैं तो तेरे साथ हूँ
ढूंढना कहाँ है !"
तब जाना-माना
मुझमें ही है साईं
और शिर्डी मेरा शरीर ……………………. ॐ साईं राम
ॐ
जवाब देंहटाएंनि:शब्द करते भाव एवं प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंजय साईं राम
जवाब देंहटाएंसत्य वचन रश्मिप्रभा जी ! यह तन ही मंदिर है और हृदय भगवान का आसन ! कहीं और ढूँढने की ज़रूरत ही कहाँ है ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंवह सुना है न ..तेरा राम तेरे मन में है ...बस यही सच है ...ऑंखें मूंदकर देखिये ..साक्षात् प्रकट हो जायेंगे .....
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